मंगलवार, फ़रवरी 03, 2015

सवाब-ए-इश्क़














अपने मुस्तकबिल में चाहता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए

इश्क़ से लबरेज़ दिल को मेरे
वो शान-ए-हाल मिल जाए

उनकी मदहोश आंखों में
मेरा खोया ख़्वाब मिल जाए

गुज़रते हुए लम्हातों में
इंतज़ार-ए-सौगात मिल जाए

सरगर्म मोहब्बत को मेरी
ख़ुशनुमा एहसास मिल जाए

अछाईयां जो हैं दामन में मेरे 
उनका वो कारदार मिल जाए

आरज़ुओं से तरसती नज़रों को
वो गुल-ए-गुलज़ार मिल जाए

जो हैं ज़िन्दगी से ज्यादा अज़ीज़
वो यार-प्यार-दिलदार मिल जाए

अपने मुस्तकबिल में ढूँढता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए

जान-ए-इस्तिक्बाल - Life of our future
सवाब - Blessing
शान-ए-हाल - Dignity of our present
सरगर्म - Diligent
कारदार - Manager


--- तुषार राज रस्तोगी ---

2 टिप्‍पणियां:

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