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मंगलवार, जुलाई 21, 2015

एक अधूरी प्रेम कहानी

उस रात बारिश में भीगती उस लड़की को देखा। देखने पर तो लगता था वो मुस्कुरा रही है पर सच यही था की वो दर्द था जो उसकी खूबसूरत आँखों से रिसता हुआ उसके गालों को और सुर्ख कर रहा था और फिर बारिश में पानी के साथ गुफ़्तगू करता हुआ अपनी राह को निकल जाता था। वहीं करीब में एक लड़का एकदम खामोश, गुमसुम, खोया हुआ अकेला बैठा अपने अकेलेपन के साथ जद्दोजहद करता हुआ अपने पर रोता नज़र आ रहा था। उन दोनों की पहली मुलाक़ात एक सूनसान सड़क पर हुई थी। यकायक आँखें चार होते ही उनके दिल एक दूजे के लिए धड़कने लगे थे और उन्हें पहली नज़र वाला इश्क़ हो गया था। वो दोनों आपस में आत्मा से जुड़ाव महसूस करने लग गए थे और यह सब इतनी तेज़ी के साथ हुआ जिसकी ना तो उन दोनों को कभी कोई उम्मीद ही थी और ना ही ऐसे किसी हसीं हादसे की उन्होंने कल्पना ही की थी। इसमें बुरा तो कुछ भी नहीं था, क्योंकि अब तो शायद सब कुछ अच्छा ही होना था। उन दोनों को जो भी कुछ चाहियें था वो उन्हें मिल गया था और जो उनके पास नहीं था वो भी आज उनके पास था। उनकी जिंदगियां इश्क़ के अमृत में सराबोर, मीठे गीत गुनगुनाती, बेहद उल्लासित और प्रकाशमय नज़र आ रहीं थी और इस सबके सामने उनकी दिक्कतें, परेशानियाँ और ज़िन्दगी के दीगर मसले बहुत ही छोटे पड़ते नज़र आते थे।

परन्तु यह सब शायद बस कुछ लम्हों तक सीमित था क्योंकि हर वक़्त चाँद सितारों पर होने की कल्पना करना तो बेवकूफ़ी करने जैसा ही होता है और वास्तविकता से परे जीवन जीने का मतलब एक हवा होते सपने में जीने और उम्मीद लगाने से ज्यादा कुछ भी नहीं होता है। जब जीवन में प्यार जैसा सुखद अनुभव मिलता है तब उससे ज्यादा उत्कृष्ट और कुछ नहीं होता, इससे बेहतरीन जीवन में कुछ और मिल ही नहीं सकता पर इस बात को सभी जानते और मानते हैं जिसे शर्तिया कह सकते हैं कि ज़िन्दगी में अच्छाई का पीछा बुराई कभी नहीं छोड़ती। आख़िर तक दुम पकड़े उसे खाई में धकेलने की कोशिश में लगी ही रहती है। और फिर आख़िरकार वही हुआ जिसका डर था सब कुछ सही और अच्छा था पर दर्द ने पीछा किया और बिना किसी शक-ओ-शुबा के कहें तो दोनों के दिलों को ख़ाली कर दिया। उन्होंने सोचा था कि उनका इश्क़ और वो परिंदे की तरह आज़ाद हैं पर शायद दुनिया में सही, सम्पूर्ण, दोषहीन, निष्कलंक प्यार जैसा कुछ होता ही नहीं है। ख़ामियों के साथ इश्क़ करना ही परिपूर्ण प्रेम है।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, जून 06, 2015

दे देते














दिया पानी क्या आँखों का रवानी खून की देते
दिलाती याद उम्र भर निशानी दो जून की देते

जो देनी थी तो होठों की मुस्कराहट ही दे देते
कलाम-ए-पाक रच इश्क़ का तुम साथ दे देते

कोई यादों की नज़्म लिख ज़ुल्फ़ में टांक ही देते
बीते लम्हों की काट कर एक आदा फांक ही देते

छिपाकर दिल में जो संजोये वो एहसास दे देते
तनहा रातों की बेचैनी से भरे वो जज़्बात दे देते

देना ही था कुछ 'निर्जन' जिगर की आग दे देते
दम तोड़ती मोहब्बत का दीवान-ए-ख़ास दे देते

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, मार्च 14, 2015

इश्क़ तो इश्क़ है


"सुनो, क्या तुम ठीक हो ?" बड़े ही सशक्त, मासूम और मीठे शब्दों में उसने पुछा।

"नहीं, बिलकुल भी ठीक नहीं हूँ" उसने करुणा भरे गले से रोते हुए कहा और उसके गर्म आंसुओं से उसके बर्फ से ठंडे और सूने गाल जल रहे थे।

"अच्छा" तुरंत त्योरी चढ़ा धर्य साधने से पहले वो बोला, "तो आओ, मैं तुम्हे थाम लेता हूँ।"

"लेकिन, नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकते" उसकी आवाज़ तीख़ी हो सकती थी पर उसने आंसुओं से रुंधे हुए स्वर में धीरे से जवाब दिया।

"क्यों, क्यों नहीं ? तुम हमेशा ऐसा क्यों करती हो ?"

"क्योंकि - क्योंकि वो सब यही कहते हैं, तुम नहीं कर सकते - कभी नहीं कर सकते !"

"अच्छा, तो हम कब से उनकी सुनने लगे हैं ? ज़रा बताओगी ?" उसने हलके से गहराई लिए लहज़े से पुछा। इस सवाल के पीछे गहरा मतलब छिपा था ।

"मैं तुम्हे चाहती हूँ... बहुत प्यार करती हूँ..."

"पगली, मुझे मालूम है, तुम मुझे बहुत प्यार करती हो," और उसने आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और सीने से लगा लिया।

"फिर आग़ोश में दोनों एक दुसरे को चूमते रहे। दोनों आंसुओं का मीठा और खारा स्वाद अपने होठों पर चखते रहे। दुनिया क्या सोचती है और क्या कहती है इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। पड़ता है क्या ?

आख़िर इश्क़ तो इश्क़ है इसे इश्क़ ही रहने दो।

--- तुषार राज रस्तोगी ---