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रविवार, अगस्त 14, 2016

असली स्वतंत्रता दिवस


















आज स्वतंत्रता दिवस है, पर,
दिल यह कहने को विवश है,
क्या यहाँ है सच्ची स्वतंत्रता?
हर पथ पर है बस परतंत्रता...

जन गण मन अधिनायक जय,
शायद यह है भी, या नहीं है?
परन्तु क्या ७० वर्षों बाद भी,
अपने देश की जय है? नहीं है...

बरसों बाद भी हर एक शख़्स,
परेशानियों से लड़ रहा है,
झूठी सामाजिक अराजकता से,
चुपचाप नाक़ाम भिड़ रहा है...

यहाँ की व्यवस्था बड़ी निराली है,
जो करती चाटुकारों की रखवाली है,
जो आँखों के रहते हुए भी अंधे हैं,
कान-ज़बां रखकर भी गूंगे-बहरे हैं...

विकास तो बख़ूबी हो रहा है,
पर मज़े उसके कौन ले रहा है?
और यदि नहीं हो रहा है, तो,
कौनसा कोई ज़िम्मेदारी ले रहा है...

यहाँ गलत कोई भी नहीं है, क्योंकि,
हर बाशिंदा यहाँ समझदार-सही है,
बस, अब बचा एक लम्बा इंतज़ार है,
उसका जो देश का सच्चा पालनहार है...

जो अपने साथ सबका ख़याल रखेगा,
जो किसी की भी नोक पर नहीं रहेगा,
अपनी बनाई सही नीतियों पर चलेगा,
और इस भारतवर्ष का भला करेगा...

वो व्यक्ति हम सबके भीतर ही है,
बस जगाना है अपने इमान को,
आग जलानी है अपने दिलों में,
बाहर निकलना है अपने बिलों से...

फिर यही आग मशाल बन जलेगी,
परवाज़ देगी अधूरे सपनो को 'निर्जन',
जो दफ़न हो गए हैं सड़ी राजनीति तले,
उस दिन होगा असली स्वतंत्रता दिवस...

#तुषारराजरस्तोगी #स्वतंत्रतादिवस #१५अगस्त #७०वर्ष #निर्जन #राजनीति

समस्त भारतवर्ष को तुषार राज रस्तोगी 'निर्जन' की तरफ़ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

शनिवार, अगस्त 15, 2015

भारत स्वतंत्र हो गया है























लो फ़िर से आया कहने को स्वतंत्रता दिवस
पर मैं हूँ अड़ियल इसे ना मानने को विवश

क्या सच में अपना देश हो गया आज़ाद है?
फ़िर क्यों खत्म नहीं होता सेक्युलरवाद है

कल पकिस्तान, बांग्लादेश काटा था आज तेलंगाना है
तरीका वही है बटवारा कर देश को बेच खाना है

आज़ादी का मोल यहाँ कुछ लोग क्या ख़ूब चुकाते हैं
गरिमा हिंदुस्तान के झंडे की जूतों में रौंदते जाते हैं 

काश्मीर की आग़ में मुल्क को भड़काना और जलना है
सेक्युलरवाद के चूल्हे पर राजनैतिक मंसूबा पकाना है

करते हैं तार-तार अस्मत आतंकी भारत माता की यहाँ
वो पीटते हैं डंका ईमानदारी-भाईचारे का बैठकर वहाँ

सामने आकर जो भाई कहकर गले से लगते हैं
ख़ंजर लिए आस्तीन में  वही पीछे से वार करते हैं

वो जो बनाते हैं आपसे बातें मीठी कई-कई-कई
दिल-दिमाग-सोच से होते हैं सच में शातिर लोग वही

जहाँ देश को बेचने वाला ही आज देश पे राज करता है
वहाँ देशभक्त कोख़ का जाया बेमौत सूली पर चढ़ता है

आतंक और घोटालों में बढ़ गया है देश बहुत आगे
वाह..! देखो तो लोगों के इमां सच में हैं कितने जागे

फ़र्ज़ी, दोगले, भ्रष्ट, धूर्त, पाखंडी खच्चर ज़ाफ़रान उड़ा रहे हैं
देशभक्त, इमां वाले, उसूल पसंद घोड़े सूखी घास चबा रहे हैं

नक़ाबपोश, मतलबपरस्त, झूठा हर एक शख्स दिखता है यहाँ
कभी सच की मूरत, न्याय पसंद महाराजा हरिश्चन्द्र जन्मे थे जहाँ

बे-ईमानी, बहसखोरी, लड़ने, भिड़ने को हर एक आमादा है
गोया चुनाचे सच को सच मान लेने में किसी का क्या जाता है

क़ानूनी शिकंजे में जकड़ा कोई मासूम भूख-प्यास से मरा जा रहा है
वहीं एक नापाक आतंकी यहाँ दामाद बनकर पकवान उड़ा रहा है

आज लहू सबका बदरंग, सफ़ेद, ठंडा, मिलावटी हो गया है
देशभक्ति वाला वो जज्बा अब तक़रीबन खत्म ही हो गया है

क्या ऐसी प्रगति की रफ़्तार ही उम्दा मिसाल देती है?
जो भी हो भारत माँ तो आज भी फटेहाल ही रहती है

अपनी खुदगर्ज़ी की कब्र में हर एक बाशिंदा चैन से सो गया है
लो सुनो अभी भी वो कहते हैं 'निर्जन' भारत स्वतंत्र हो गया है

--- तुषार राज रस्तोगी ---