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बुधवार, जून 01, 2016

मोहब्बत हो ही गई है















जादू-अदा बा-ख़ुदा ख़ूब उसकी
बाग़-ए-इरम ज़िन्दगी होने लगी है

ऐतबार-ए-इश्क़ ऐसा है उसका
आलम-ए-दीवानगी होने लगी है 

नज़राना-ए-शोख़ी नज़र ख़ूब उसकी
अज़ीज़-ए-दिल उल्फ़त होने लगी है

गुल-ए-विसाल मासूमियत उसकी
दीवार-ए-ज़िन्दगी होने लगी है

हसरत थामे आँचल अब उसका
जानिब-ए-गुलिस्ताँ होने लगी है

चलते हैं साथ जिस रहगुज़र पर
अब जादा-ए-हस्ती होने लगी है

लुत्फ़-ए-तसव्वुर रहता है उसका
चाँदनी अब हर रात होने लगी है

फ़िराक़-ए-यार सोचते भी अब
दहशत सी दिल में होने लगी है

लगता है 'निर्जन' रूह्दारी करते
तुझको मोहब्बत हो ही गई है

बाग़-ए-इरम - जन्नत का बागीचा
ऐतबार-ए-इश्क़ - प्यार पर भरोसा
आलम-ए-दीवानगी - दीवाने की स्थिति
अज़ीज़-ए-दिल - दिल को प्रिय
गुल-ए-विसाल - मिलन का फूल
दीवार-ए-ज़िन्दगी - ज़िन्दगी का सहारा
जानिब-ए-गुलिस्ताँ  - गुलाबों के बागीचे की तरफ़
रहगुज़र - पथ
जादा-ए-हस्ती - ज़िन्दगी की राह
फ़िराक़-ए-यार - प्रियेतम से बिछड़ना
रूह्दारी - लुका छुपी

--- तुषार राज रस्तोगी 'निर्जन' ---

#इश्क़ #ग़ज़ल #तुषारराजरस्तोगी #निर्जन #रूह्दारी #मोहब्बत

सोमवार, अक्तूबर 05, 2015

गुलबन कर गया















रौशन चरागों को मेरा नसीब कर गया
ख़ुदा शायद मुझे ख़ुशनसीब कर गया

मंज़िलों के रास्ते मेरे आसान कर गया
हर एक मरासिम वो मेरे नाम कर गया

ज़र्रा-ज़र्रा महक उठा जिसकी ख़ुशबू से
है कौन जो शामों को सरनाम कर गया

बहक रहा हूं अब भी मैं अरमानों में तर 
वो फ़रिश्ता नज़रों से दिल में उतर गया

सजा कर राह में 'निर्जन' गुंचा-ए-ग़ुलाब
मेरा दिलबर मेरी राहें गुलबन कर गया

मरासिम - रिश्ते / Relations
गुलबन - ग़ुलाब की झाड़ी / Rosebush

#तुषारराजरस्तोगी

गुरुवार, सितंबर 17, 2015

संवर जाता है



















उसकी बातों से दिल बेक़रार हो जाता है
जब नहीं हों बातें दिल बेज़ार हो जाता है

उससे मिलने को जीया ये मचल जाता है
उसकी यादों में दूर कहीं निकल जाता है

जब इंतिहा में सदाक़त-शिद्दत दोनों हों
उस तपिश से पत्थर भी पिघल जाता है

उसके इश्क़ की गहराई में जब से डूबा
दफ़न है ये अहं, ग़ुस्सा संभल जाता है

जुदाई का उससे जब भी ख़याल आता है
सैलाब-ए-लहू इन आँखों में उतर आता है

इश्क़ का कोई मौसम होता नहीं 'निर्जन'
इश्क़ से हर एक मौसम ही संवर जाता है

बेक़रार - restless
बेज़ार - to be sick
इंतिहा - utmost limit, end, extremity
सदाक़त - truth, sincerity, fidelity
शिद्दत - intensity
तपिश - heat,

#तुषारराजरस्तोगी #इश्क़ #मोहब्बत #ग़ज़ल

मंगलवार, अगस्त 11, 2015

आशारों पे जवानी आई















इंतज़ार जिसका था एक ऊम्र से यारों मुझको
नासाज़ तबियत का सुन दौड़ी वो दीवानी आई

रोज़ गुजरतीं थीं शामें मदहोश उसके पहलु में
साथ उसके सुकून और ख़ुशी की कहानी आई

जुम्बिश नहीं थीं जिन काफ़िर नसों में अब तक
देख उसको लहू में फ़िर से पुरज़ोर रवानी आई

लगता था बीत जाएगी ज़िन्दगी अब तनहा यूँ ही
बाद मुद्दतों के फिर एक नई शाम सुहानी आई

किया करता था बातें रोज़ ख़ुदसे उसके बारे में
मिलीं नज़रें तो बात नज़रों से भी न बनानी आई

अरसा बाद दिया मौका उसने ग़ज़ल बनाने का
'निर्जन' ख़ारे अश्कों से आशारों पे जवानी आई

#तुषारराजरस्तोगी  #ग़ज़ल  #इश्क़  #मोहब्बत  #इंतज़ार  #आशार

रविवार, अगस्त 09, 2015

राहगीर हूँ मैं














मेरी ताबीर-ए-हुस्न तेरा दिल-ए-दिल-गीर हूँ मैं
तेरे मचलते ख़्वाबों की इबारत-ए-ताबीर हूँ मैं

कल तलक थे बुझे ख़द-ओ-ख़ाल-ए-हयात मेरे
आज रौशन-रू तेरे इश्क़ की एक तस्वीर हूँ मैं

दिल-ओ-जिस्म-ओ-जाँ से तेरा हूँ तू ही संभाले
दम-ए-दीगर से महकी शोख़ी-ए-तहरीर हूँ मैं

बुझ रह था मैं हर पल ज़िंदगी-ए-क़फ़स में 
आजकल इश्क़ में तेरे सहर-ए-तनवीर हूँ मैं

शरीक-ए-हयात हो जाए काश तू जल्दी मेरी
वस्ल-ए-जानाँ को तरसता हुआ राहगीर हूँ मैं

ताबीर-ए-हुस्न: interpretation of beauty
दिल-ए-दिल-गीर
: heart attracting heart,appealing heart
इबारत
: composition
ताबीर
: interpretation, explanation, elucidation
बुझे
: extinguished
ख़द-ओ-ख़ाल-ए-हयात
: features of life
रौशन-रू
: bright faced
दम-ए-दीगर
: breath
शोख़ी-ए-तहरीर
: playfulness/mischief of writing mischievous writing, jotting
ज़िंदगी-ए-क़फ़स
: cage of life
सहर-ए-तनवीर
: morning brightness
शरीक
: a partner,a colleague,a comrade,a friend
वस्ल-ए-जानाँ
: union with beloved

#तुषारराजरस्तोगी  #ग़ज़ल  #इश्क़  #मोहब्बत  #इंतज़ार  #तड़प

रविवार, जून 21, 2015

रहती है














लोग मिलते ही हैं औ महफ़िल भी जवां रहती है
वो साथ ना हो तो हुस्न-ए-शय में कमी रहती है

ग़रचे ये नहीं है ख़ुशी मनाने का मौसम तो फिर
जो ख़ुशी मनाऊं भी तो पलकों में नमी रहती है

हर किसी दिल में उफ़नता नहीं सर-ए-उल्फ़त
कुछ दिलों पर सदा गर्द-ए-मायूसी जमी रहती है

इश्क़ मसाफ़त-ए-हस्ती है ज़माने को क्या मालूम
कब तलक किसकी हमसफ़री हमक़दमी रहती है

तू भी उस हूरान-ए-ख़ुल्द पर फ़नाह है 'निर्जन'
जिसके लिए खुदा की धड़कन भी थमी रहती है

सर-ए-उल्फ़त - Madness for Love
गर्द-ए-मायूसी - Trifle of Sorrows
मसाफ़त-ए-हस्ती - Journey of Life
हूरान-ए-ख़ुल्द - Houris of Paradise


--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, जून 12, 2015

अपना कहते मुझे हजारों में















जो वफ़ा होती खून के रिश्तों में बाक़ी
तो जज़्बात क्यों बिकते बाज़ारों में

जो हर कोई देता साथ ज़मानें में अपना
तो तनहा चांद ना होता सितारों में

जो हर गुल की ख़ुशबू लुभाती दिल को
तो गुलाब ख़ास ना होता बहारों में

जो मिले मौक़ा तुरंत नज़र बदलते हैं 
तो बात है ख़ास खुदगर्ज़ यारों में

बख़ुदा 'निर्जन' भी ख़ुशक़िस्मत होता
जो वो अपना कहते मुझे हजारों में

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, जून 01, 2015

हुस्न-ए-मुजस्सम









हुस्न-ए-मुजस्सम बेमिसाल है, तेरी नज़र
ये दरिया-चेहरा बा-कमाल है, तेरी नज़र

ये ज़ुल्फ़ें लब-ओ-रुख़्सार है, तेरी नज़र
बेनियाज़-ए-नाज़ वफ़ादार है, तेरी नज़र

पैकर-ए-हुस्न-ओ-लताफ़त है, तेरी नज़र
ख़ुदाया इज़हार-ए-अदावत है, तेरी नज़र

ला-फ़ानी पाकीज़ा अफ़कार है, तेरी नज़र
बा-अदब बेताब-ओ-बेक़रार है, तेरी नज़र

सवाल-ए-विसाल से इनकार है, तेरी नज़र
उल्फ़त-ए-देरीना से इक़रार है, तेरी नज़र

सरापा-ए-मोहब्बत ज़माल है, तेरी नज़र
ज़माना जो देगा वो मिसाल है, तेरी नज़र 

हुस्न-ए-मुजस्सम - Beauty incarnate
दरिया-चेहरा - River face
बा-कमाल - With perfection
लब-ओ-रुख़्सार - lips and cheeks
बेनियाज़-ए-नाज़ - ignorant of pampering
वफ़ादार - faithful, loyal, sincere
पैकर-ए-हुस्न-ओ-लताफ़त - Form of beauty and delicacy, Subtlety
ख़ुदाया - O God
इज़हार-ए-अदावत - Expression of Enmity
ला-फ़ानी - Immortal
पाकीज़ा - Neat, Clean, Pure, Chaste
अफ़कार - Thought
बा-अदब - Respectful, Polite
बेताब-ओ-बेक़रार - Impatient and Restless
सवाल-ए-विसाल - Request for Union
सर-ए-उल्फ़त - Madness for Love
उल्फ़त-ए-देरीना - Love of a long time
सरापा - Delicate figure of a woman


--- तुषार राज रस्तोगी ---



गुरुवार, फ़रवरी 12, 2015

तेरी आँखें













बद्र-ए-बहार से सुर्ख तेरे चेहरे पर
बादः सी नशीली क़ातिलाना तेरी आँखें

मदहोश मदमस्त सूफ़ियाना नशीली
'अत्फ़-ओ-लुत्फ़ से भरी तेरी आँखें

वो पलकें उठें तो दीवाना कर दें
वो पलकें गिरें तो मस्ताना कर दें

मैं इनके करम का तालिब हूँ
मेरी तो हुब्ब-ए-वस्ल हैं तेरी आँखें

वो तड़पाती तरसाती आवारा बनाती हैं
करें कुछ तो ख़याल मेरा तेरी आँखें

हैं जीने-मरने का सबब मेरे
यह रूह-ए-घरक तेरी आँखें

आरा'इश पलकें आब-ए-आ'इना हैं
खुदा का कमाल-ओ-जमाल हैं तेरी आँखें

अक़ीदा-ए-तअश्शुक हैं अबसार तेरे
हैं काबिल-ए-परस्तिश तेरी आँखें

आशिक बहुत क़त्ल हुए होंगे 'निर्जन'
गुल-ए-हुस्न ज़रा अब संभाल तेरी आँखें

बद्र-ए-बहार - full moon glory, beauty & delight
बादः - wine & spirits
'अत्फ़ - kindness, affection
तालिब - seeker
हुब्ब - desire
वस्ल - union, meeting
रूह - spirit
घरक - drowning
आरा'इश - decorating, adoring, beauty
आब-ए-आ'इना - polish of a mirror
अक़ीदा - religion
तअश्शुक - love, affection
अबसार - eyes
परस्तिश - offering prayer
गुल - rose
हुस्न - beauty and elegance


--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, फ़रवरी 21, 2014

तू साथ दे तो












तू कहती हैं तेरे लिए ये ग़ज़ल लिख दूं
तू साथ दें तो शब्दों का कँवल लिख दूं

गालों की सुर्खी से तेरी किरण लिख दूं
तू साथ दें तो आसमां पर सनम लिख दूं

आँखों के काजल से तेरे ये रात लिख दूं
तू साथ दें तो सितारे भी मैं साथ लिख दूं

दिल कहे है कागज़ पर गुलाब लिख दूं
तू साथ दें तो इश्क़ का गुलदस्ता लिख दूं

'निर्जन' तेरी आरज़ू इस दिल पर लिख दूं
तू साथ दे तो ज़िन्दगी भर आदाब लिख दूं