रविवार, अगस्त 09, 2015

लघुकथा: बैसाखियाँ

किसका समय कब बदल जाए किसको को कुछ मालूम नहीं होता। आज गोविन्द असहाय है और अपनी लाचारी पर अक्सर मलाल करता है। कल तक जो हवा में उड़ा फिरता था आज ज़मीन पर रेंगने लायक भी नहीं रहा। एक हादसा उसकी दोनों टाँगे छीन ले गया। बड़ी ही मुश्किल से वो आज बैसाखियों के सहारे अपने जिस्म को आगे धकेल पाने की जद्दोजहद में लगा रहता है। आदत नहीं थी ना और ना कभी सोचा था कि जीवन में यह दिवस भी देखना होगा।

अभी कल की ही तो बात लगती थी जब वो अपने कॉलेज के मुख्य द्वार के सामने बैठने वाले एक बेचारे दुकानदार की खिल्ली उड़ाया करता था और उसको लंगड़ा कहकर पुकारा करता था। कई दफ़ा दुत्कार कर या अपनी मोटरसाइकिल उस पर चढ़ाने का झांसा देकर उसे बे-इज़्ज़त और डराया-धमकाया भी करता था। इसपर भी जब उसका दिल परेशान करने से ना मानता तो उसकी पुरानी बैसाखियाँ छिपा दिया करता या लेकर भाग जाया करता और वो बेचारा बैठा घंटो इसके लौटने की बाट जोहता रहता परन्तु आज समय की लाठी की गाज ने उसे गूंगा कर दिया था। वो बैसाखियों पर चलता तो जा रहा था पर ये नहीं मालूम था किधर जाना है। अपनी मानसिक उधेड़बुन से लड़ते हुए वो घर से दूर सड़क के किनारे पहुँच गया था। हर तरफ़ शोर और वाहनों का शोर मचा था। वो सड़क पार करे तो कैसे? यही सोच कर बड़ी देर से चिंतित खड़ा था। कल जो मानसिक रूप से अपाहिज था आज वो देह से भी विकलांग हो गया था और लाचार था। तभी एक भले मानस से मदद का हाथ बढ़ाया और सड़क पार करा दी।

सड़क तो पार कर ली पर मस्तिष्क में उथल-पुथल कायम थी। अपनी पुरानी ज़िन्दगी के कुछ बेहद बेहूदा दिनों को कोसता हुआ वो धीरे-धीरे बढ़ता तो चला जा रहा था पर कुछ अनसुलझे सवाल उसका पीछा छोड़ने का नाम तक नहीं ले रहे थे। शायद उस बूढ़े भिखारी की हाय लगी है मुझे...मैंने ज़िन्दगी में बहुत गुनाह किये हैं उसी की सज़ा मिली है मुझे शायद...मुझे ऐसा बर्ताव उसके साथ नहीं करना चाहियें था...बड़बड़ाता हुआ उसका अहसास बैसाखियों पर आगे तो चल रहा था पर नियति आज ज़िन्दगी को बहुत पीछे ले आई थी।

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शुक्रवार, अगस्त 07, 2015

लघुकथा: पश्चाताप के आंसू

नीशू अभी-अभी बाहर से आवारागर्दी करके वापस लौटा था और घर के दरवाज़े से अन्दर दाख़िल हो ही रहा था कि उसे अपनी छोटी बहन रेवती के सुबक-सुबक कर रोने की आवाज़ आई। बहन को रोता सुन दौड़ा-दौड़ा कमरे में आया और पुछा, "क्या हुआ? ऐसे रो क्यों रही है? किसी ने कुछ कहा तुझे? बता मुझे मैं मुंह तोड़ दूंगा उसका - बता तो क्या हो गया?" - और बड़े ही विचिलित मन से और सवाल भरी नज़रों से रेवती की ओर देखता रहा।

"अब बोलेगी भी या टेसुए ही बहाए जाएगी, मेरा दिल बैठा जा रहा है। बता भी हुआ क्या है?"

रेवती ने आंसू थामते और सुबकते हुए कहा, "भैया...! कल से हम कॉलेज नहीं जायेंगे। हमें उसकी हरकतें पसंद नहीं। वो लड़का रोज़ हमें परेशान करता है। गंदे-गंदे जुमले कसता और इशारे भी करता है। आज तो हद ही हो गई हम स्कूटी पर मीना के साथ कॉलेज जा रहे थे और वो पीछे से अपनी मोटरसाइकिल पर आया और मेरा दुपट्टा ज़ोर से खींच कर ले भागा। देखो, मैं सड़क पर गिर भी गई मेरे कितनी चोट आई है, खून भी निकला कितना। मैं कल से नहीं जाऊँगी वरना वो कमीना फिर से परेशान करने आ जायेगा।"

इतना सुनते के साथ ही नीशू सन्न रह गया, मानो उस पर घड़ो पानी पड़ गया हो। ऐसे कमीनेपन में तो वो भी माहिर था। सारा दिन वो भी तो यही सब करता था अपने आवारा मित्रों के साथ मिलकर, मोहल्ले के चौराहे पर खड़े रहकर। आती-जाती, राह चलती लड़कियों को छेड़ना, फितरे कसना, परेशान करना, सीटियाँ बजाना, फ़िरकी लेना और भी ना जाने क्या-क्या। छिछोरपन में कोई कमी थोड़ी छोड़ी थी उसने कभी। उसकी करनी का नतीजा आज ख़ुदकी छोटी बहन के साथ हुए दुर्व्यवहार के रूप में उसके सामने था।

उसे यह अहसास और आभास कभी ना हुआ था कि, ऐसा कुछ उसकी बहन के साथ भी हो सकता है। अब उसे समझ में आया कि जिनके साथ वो बदसलूकी करता था वो भी किसी की बहन, बेटी, पत्नी या किसी के घर की इज्ज़त थीं। आज अपने आप से नज़रे मिलाने लायक नहीं रहा था वो, आत्मग्लानि होने पर उसका वजूद उसे धिक्कारने लगा और उसका दिल स्वयं अपने मुंह पर थूकने को करने लगा। शर्म से मुंह लटकाए, सर झुकाए, धक से वहीँ बहन के पास बैठ गया और पश्चाताप के आंसू उसकी आँखों में भर आए।

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मंगलवार, अगस्त 04, 2015

मेरा सपना

"ऐ राज...! सुनो ना...यहाँ आओ..." आराधना ने धीरे से पुकारते हुए कहा, "मैं तुम्हे अपने सपने के बारे में कुछ बताना चाहती हूँ।"

राज बिस्तर पर पास आकर लेट जाता है और कहता है, "लो जी आ गया, बोलो क्या बताना चाहती हो...अब कहो भी, ऐसे क्या देखती हो...बोलो ना, मैं इंतज़ार कर रहा हूँ।"

"मैं जब सो जाती हूँ तब, मेरा मन कहीं दूर लम्बी और घुमावदार राह पर भटकने के लिए निकल पड़ता है। एक लचीले और रंगीन फ़ीते की तरह वो राह मेरे सामने बिछ जाने को बेक़रार रहती है, साथ में अपनी मनमोहक अदाओं से मेरे दिमाग़ को लुभाता है...और वो मंत्रमुग्ध हो इसका अनुगमन करना शुरू कर देता है। नींद जितनी गहरी होती चली जाती है, मैं विचरण करती हुई उतनी ही दूर निकल जाया करती हूँ, किसी अनदेखे, अनजाने, अपरिचित स्थान पर दूर बहुत दूर, इस संसार से परे कहीं किसी अलौकिक और मनमोहक दुनिया के मध्य, जहाँ मेरे सिवा और कोई नहीं होता। इस राह पर चलते हुए जिन चीज़ों का सामना मेरा मन-मस्तिष्क करता है और जिस तरह के कारनामे मैं करती हूँ, वो मुझ और मेरे सपने को साहसिक की श्रेणी में ला खड़ा करते हैं। परन्तु उसके बाद मैं जितना भी दूर इस पथ पर आगे गहराई की ओर चलती चली जाती हूँ, सुबह जागने के पश्चात मेरे लिए इस सपने को याद रखना उतना ही कठिन हो जाता है। नींद जितनी गहन होती चली जाती है मेरा सपना भी उतने ही अस्पष्ट और अस्पृश्य हो जाता है।"

"ओहो...क्या आराधना वो तो बस सपना ही है, तुम इतना संजीदा क्यों हो रही हो? सपना आया और सपना चला गया बस भूल जाओ।" - राज ने उसका हाथ थामते सहजता के साथ कहा...

आराधना ने उसकी आँखों में देखा और कहा, "नहीं राज...! ये सपने नहीं हैं मेरे लिए, कुछ तो है जो इसमें छिपा है...शायद कोई गहरा राज़...! मेरे दिल को मालूम होता है कब वापस लौटना है। हालाँकि उस राह के किसी किनारे पर कहीं दूर मैं खड़ी रहती हूँ और मेरे मस्तिष्क को याद होता है कब उस राह पर वापस चलना शुरू करना है जिसपर चलकर यहाँ तक आई थी और जैसे-जैसे वो उस बिंदु तक पहुँचता है जहाँ से शुरू किया था मेरी नींद टूटने लगती है और मैं जाग जाती हूँ। मैं जैसे ही उस राह के शुरुआती स्थल पर पहुँचती हूँ, मेरी आँखें खुल जाती हैं और मेरा सपना सिर्फ एक धुंधली सी याद बनकर रह जाता है....ओह...! सिर्फ एक याद।"

"अरे तो क्या हुआ? तुम्हे कौन सा कोई फ़िल्म बनानी है अपने सपने को लेकर, इतना ज़ोर ना डालो अपने नाज़ुक दिमाग़ पर, नहीं याद आता तो ना सही...छोड़ो भी, अब सोने की कोशिश करो तुम और ज्यादा दिमाग ना लगाओ इन सब बातों में।" - राज ने बात को खत्म करने के लिहाज़ से कहा।

"नहीं...ये ख़्वाब कभी-कभी जीवन में बाधाओं का पर्याय भी बन सकते हैं। अगर कभी मेरा मन, उस राह पर कभी, कहीं दूर बेहद दूर निकल गया या मैंने कभी अनजाने में अपने दिल को अनजानी राहों पर भटकने और बहकने के लिए छोड़ दिया, तो शायद मैं वहीँ रह जाऊँगी, गुम जाऊँगी, वापसी की राह कभी ख़ोज नहीं पाऊँगी, फिर...फिर क्या होगा? मैं कभी वापस नहीं लौट पाऊँगी क्या? ये सोचकर भी मेरा सारा वजूद डर से सिहर उठता है।" - उसने घबराते हुए राज को कस कर बाहों में जकड़ते हुए सवाल किये...

"हा हा हा...फिर कुछ नहीं होगा, समझी...?" - राज ने ज़ोरदार हंसी के साथ जवाब दिया

"क्यों?" - आराधना ने फिर पूछा

"क्योंकि उसी पल मैं अपने सपने की राह से होता हुआ वहां तुम्हारे पास आ जाऊंगा और तुम्हे अपने साथ वापस यहाँ ले आऊंगा। जब तुम्हारा साथ मैंने यहाँ नहीं छोड़ा कभी तो फिर भला सपने में कैसे तुम्हे अकेला रहने दूंगा। मेरे साथ के बिना तो मैं तुम्हे, सपना क्या कहीं भी गुमने नहीं देने वाला। जो राह तुम्हे सपने में वापसी का रास्ता भुला दे मैं ऐसी राह को ही हमेशा के लिए तबाह ना कर दूंगा और वैसे भी अगर कहीं गुमना ही है तो हम दोनों साथ में खो जायेंगे...कहीं किसी हसीन ख़ूबसूरत सी वादियों में, पहाड़ों में, झरनों के बीच - गुमने को क्या ये सपना ही बचा है...टेंशन नहीं लेने का डार्लिंग व्हेन आई एम् विद यू...." - राज उसकी आँखों में देखता हुआ यह सब कहता जा रहा था और वो उसकी बातों और मुस्कान में खोकर सब सुन रही थी...और उसके प्यार की गर्माहट को उसकी बातों में महसूस कर रही थी।

"अच्छा बाबा...अब सो जाएँ क्या हुज़ूर? रात बहुत हो गई है...सुबह बात करें...हम्म...शुभ रात्रि...एंड स्वीट ड्रीम्स..." - इतना कहकर दो युवा धड़कते दिलों के होठों के दो जोड़े आपस में सम्पर्क में आकर मीठा सा स्पर्श करते हुए सुखाभास की अवस्था में परम आनंद का अनुभव कर उल्लासोन्माद में डूबकर एक दूजे की बाहों में निद्रा के आग़ोश में एक नया सपना देखने के लिए खो जाते हैं।

#तुषारराजरस्तोगी  #सपना  #राज  #आराधना  #इश्क़  #कहानी  #मोहब्बत

शनिवार, अगस्त 01, 2015

गुलाबो भैंस भाई सा













कुंठित सी भैंस भाई सा, देखी हमने ख़ास
सब पर करूँगी राज मैं, इत्तूसी है बस आस
इत्तूसी है बस आस, बात-बात में रमभाए
कुंठा इनकी देख, दुनिया यह त्रस्त हो जाए

कलयुग के बाज़ार में, दिखा विचित्र सा भेस
लगा गुलाबी रंग, झूमती फ़िरे गुलाबो भैंस
झूमती फ़िरे गुलाबो भैंस, बुद्धि कतई ना पाई
मंदमति वीरांगना ये, बस पूँछ हिलाती आई

सींग हैं अदृश्य इसके, घिनौना सोच विस्तार
माथे पर बस सजा रहे, बेचैनी का अम्बार
बेचैनी का अम्बार, विचलित हस्ती इसकी
ख़ुदा अक्ल दिलाए, बुद्धि कुंद हो जिसकी

परेशां औरों से रहती, ढूंढती सब में ख़ामी
धारणा बनाए रहती, करती सबकी बदनामी
करती सबकी बदनामी, जुबां कड़वी चलाए
सीधा सादा इंसान हो तो, बस पगला जाए

लोमड़ी सी है चालु, बकरी सी है दुखियारी
शातिर बड़ी गुलाबो, फैलती द्वेष की बीमारी
फैलती द्वेष की बीमारी, अजी सब बचके रहना
चक्कर में जो आए, फ़िज़ूल दुःख पड़ेगा सहना

देता 'निर्जन' ये टिप, भैंस भाई सा तुम लेना
मरखने जंगली बैल से, ज़रा बचकर ही रहना
ज़रा बचकर ही रहना, पड़ ना जाए पछताना
अपनी सोच का गोबर, अपने मुंह पर लगाना

#तुषारराजरस्तोगी  #गुलाबो  #हास्यव्यंग  #भैंसभाईसा  #नसीहत  #हैप्पीफ्रेंडशिपडे

सोमवार, जुलाई 27, 2015

स्वर्गीय चाचा कलाम को शत-शत नमन और हृदयतल से श्रद्धांजलि














अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम
जन्म : १५ अक्टूबर १९३१ - २७ जुलाई २०१५
स्थान : रामेश्वरम, तमिलनाडु, भारत
इन्हें डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम से जाना जाता है।
भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात हैं।
स्वर्गीय चाचा कलाम को शत-शत नमन और हृदयतल से श्रद्धांजलि
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वो शक्सियत है ख़ास
पर इंसा बेहद आम हैं
भारत माता के सपूत  
हिन्दुस्तान की शान हैं 

मातृभूमि सेवा में सदा
अग्रसर, अविराम हैं
कर्मयोगी, कर्मठ वो
देश का अभीमान हैं 

जीवन उनका हमेशा
ख़ुद में एक संग्राम है
शिक्षा उनसे मिली जो
बहुमूल्य वरदान है

प्रेरणा के स्रोत हर पल
वो ज्ञान के भण्डार हैं
दे जीवन दान अपना
वैज्ञानिको का मान हैं

प्रेम जनता के दिलों में
करते सभी सम्मान हैं 
भारत-रत्न, युगपुरुष वो  
अमर अब्दुल कलाम हैं

#तुषारराजरस्तोगी  #भारतरत्न #डाअब्दुलकलाम  #श्रद्धांजलि  

रविवार, जुलाई 26, 2015

मुलाक़ात

राज की मुलाक़ात आराधना से कन्याकुमारी जाते वक़्त पांच साल पहले बस में हुई थी और उसने बताया था कि वो अपने जीवन की उलझनों से भाग रही है। राज द्वारा क्यों? पूछने पर उसने जवाब दिया, "उसे मालूम नहीं क्यों - पर उसके जीवन में बहुत सी बातें ऐसी हैं जो उसके भागने के फैंसले को सही साबित कर देंगी।

उसने दायें हाथ में बड़ा कॉफ़ी का मग पकड़ा था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद वो उसमें से उठती भाप को लम्बी सांस लेकर सूंघती और आह की ध्वनि के साथ निःश्वास होकर निश्चिंत हो जाती। देखने पर प्रतीत होता था कि उसे कॉफ़ी बेहद पसंद है और वह उसके स्वाद का भरपूर आनंद लेती हुई उसका लुत्फ़ उठा रही है। राज को अहसास हुआ कि उसने उसे एकटक ताड़ते हुए पकड़ लिया है जब उसकी नाक मग के सिरे को छू रही थी, और वो झट से बोल पड़ी कैफ़ीन मेरे दिल की तरंगों के जीवित होने का एहसास कराती है। उसकी आँखें अचरज से ऐसे चौड़ी और खुली हुई थीं जैसे मानो आज तक उसने कभी पलक झपकी ही ना हो, जैसे वो डर रही हो, जैसे...जैसे उसने कुछ खो दिया हो और सूरज उसकी पलकों पर चिड़ियों की भांति ऐसे बैठा था जैसे वो तारों पर बैठ झूलती हैं क्योंकि उसने बताया कि उसे रोना-धोना ज़रा भी पसंद नहीं आता है।

उसे चीज़ों को गिराने की आदत थी और वो चौथी मर्तबा सीट के नीचे झुककर कुछ उठाने के लिए ख़ोज-बीन कर रही थी के, अचानक से ज़ोर के चिल्लाई और उसकी फ़िरोज़ी टोपी राज के हाथ से टकराई और उसके कप से चाय बाहर छलक कर गिर गई। उसने बच्चों की तरह बड़ी मासूमियत भरी नज़रों से देखते हुए, दांतों से अपने नीचे वाले होंठ को काटते हुए माफ़ी मांगी और बोली, "वो ख़ुशी से इसलिए चीख़ी क्योंकि तुम्हारे टखने पर जो टैटू है बहुत प्यारा लगा।" - उसने बताया कि जब वो अट्ठारह बरस की हुई थी तब उसने अपनी कमर पर रंगीन तितली का टैटू बनवाया था और जब भी वो उसे आईने में निहारती है तब अपने आप से फुसफुसा कर सवाल करती है कि, "क्या वो इस तितली की तरह रंगीन,खुशमिजाज़ और चुलबुली है ?"

उस रात वो दोनों एक दुसरे के साथ में अपनी ज़िन्दगी से जुड़ी कहानियां ऐसे अदला-बदली करते रहे जैसे दो प्रेमी आपस में चूमते हुए अपने इश्क़ के शर्बतों को एक दुसरे की आत्मा में उतार देते हैं और जब राज ने उससे कहा, "बत्ति जला लेते हैं क्योंकि हम मुश्किल से ही कुछ देख पा रहे हैं।" - तब इस पर मना करते हुए उसने लाजवाब जवाब दिया कि, "सच्ची और अच्छी आवाज़ों का साथ देने के लिए कभी किसी चेहरे की ज़रुरत नहीं होती है।"

उसकी गुस्ताख़ियों के बावजूद, वो बिलकुल मायावी थी और उसका उत्साह, तत्परता तथा उत्सुकता उसे बेहद मनमोहक बना रहीं थीं; उसके बात करने के अंदाज़ और शब्दों को छनछनाहट में कुछ तो था - जिसे राज समझ नहीं पा रहा था और ना ही कोई नाम दे पाने में सक्षम था और जब ठंडी हवा की लहर में उसकी ज़ुल्फ़ों का लहराना देखा तब ऐसा लगा मानो गर्म सेहरा के कांटो भरे कैक्टस में से अमृत धारा आज़ाद होकर रेगिस्तान में बह निकली हो।

अभी राज अपनी बातों के मध्य में ही पहुंचा था, उसके परिवार और उनकी खैरियत के बारे में सवाल करने ही वाला था कि बस रुक गई और कंडक्टर ने आवाज़ लगा दी की जिन्हें इस गंतव्य पर उतरना है वो आ जाएँ और अपना सामान डिक्की से निकलवा लें। उसने तेज़ी के साथ बातों का रुख मोड़ते हुए अपने कैनवास से बने बैकपैक से पोलारोइड कैमरा निकालकर झटपट एक राज का चित्र और फिर अपना चित्र खींच लिया।

अभी वो चित्रों को हवा में पंखे की तरह हिलाते हुए सुखा ही रही थी, राज ने पूछा, "इस साथ के बाद आगे कभी बात करने या मुलाक़ात का कोई तरीका या ज़रिया होगा?" परन्तु उसने तुरंत मुस्कुराकर नहीं में सर हिलाते हुए सवाल को सिरे से ख़ारिज कर दिया और बोली, "मुझे लगा था तुम मुझे इस सब से बेहतर समझते हो।" और जोर के हंसने लगी

राज के चेहरे पर फ़ीका अप्रकट मायूसी का भाव देख वो बिलकुल दंग रह गई और अपनी रेशमी आवाज़ में उसको उलझाते हुए अपने विदाई के जादुई शब्दों के जाल उस पर डाल दिए। "सुनो, ये लो," उसने खिसककर राज के सीने पर एक तस्वीर रख दी और कहा, "अब तुम्हारे पास मेरी तस्वीर है और मेरे पास तुम्हारी। एक दिन, हम फ़िर से ज़रूर मिलेंगे और शायद हमें यह सब कुछ भी याद ना रहे, पर मुझसे एक वादा करो कि जब तक हो सकेगा तुम इस तस्वीर को अपने साथ रखोगे और वैसा ही मैं भी करुँगी। और किसे मालूम है? शायद किसी रोज़ अपने अंतर्मन के ज्ञान और आवाज़ को सुनकर हम एक दुसरे को ढूँढने में क़ामयाब हो जाएँ। सम्भवतः ये बचपन के खेल छुपन-छिपाई जैसा होगा और यह खेल एक दिन सच हो जाएगा, और वैसे भी बाक़ी सब कुछ छोड़कर पूरी दुनिया हमारे इस खेल का मैदान होगी।" - उसकी आँखें यह कहते हुए चमक रहीं थीं।

पांच साल बाद भी, राज उसे दोबारा नहीं ख़ोज पाया पर उसने उम्मीद का दामन अभी तलक नहीं छोड़ा। वो जहाँ भी जाता उसे ढूँढने की कोशिश ज़रूर करता - हिन्दुस्तान, लंदन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, मलेशिया, मॉरिशस, थाईलैंड, रोम, बुडापेस्ट, श्रीलंका, और भी ना जाने कहाँ-कहाँ पर अफ़सोस उस दिन के बाद से अब तक ऐसी कोई लड़की उसे नहीं मिली जो अपनी जुल्फों में रेगिस्तानी रेत की ख़ुशबू लिए चलती हो।

इतने साल बाद, राज टिकट काउंटर पर खड़ा पेरिस को जाने वाली रात की ट्रेन की टिकट बुक करा रहा था। ठीक उसके पीछे एक लड़की लाइन में खड़ी थी, उसके रेशमी बाल हवा में लहरा रहे थे और फिर गिरकर उसके गालों को चूम रहे थे। टिकट लेकर जैसे ही वो अपना बैग लेकर प्लेटफार्म की तरफ बढ़ रहा था उसके कानो में ये आवाज़ पड़ी और वो रुक गया। वो लड़की टिकट खिड़की पर झुकी हुई थी और अधिकारी को बता रही थी की वो अपने जीवन की उलझनों से भाग रही है और इसी प्लानिंग के तहत वो आज यहाँ पहुंची है। राज यह सब सुनता रहा, रुक गया और आसमान की तरफ देख चुपचाप खड़ा मुस्कुराता रहा।

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शनिवार, जुलाई 25, 2015

लम्हे इंतज़ार के

ऐ मेरे चंदा - शुभ-रात्री, आज रात मेरे लिए कोई प्रेम भरा गीत गाओ। काली सियाह रात का पर्दा गिर चुका है और तुम्हारी शीतल सफ़ेद चांदनी कोमल रुई की तरह चारों तरफ बरसने लगी है। क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ? दिल की खिड़की खुली है और बाहर दरवाज़े बंद हो गए हैं। दुनिया मेरे इर्द-गिर्द मंडरा रही है और मैं हूँ जो रत्ती भर भी हिल नहीं रहा है। मैं अपनी सोच और विचारों के साथ स्थिर हूँ। मैं उस शिखर पर हूँ जहाँ से देखने पर सब कुछ बदल जाता है। मेरी हर सांस के साथ मेरे अरमानो पर पिघलती बर्फ़ के बहते हुए हिमस्खलन जैसा डर लगने लगता है। तुम कितनी दूर हो मुझसे। मैं तुम्हे वास्तविकता में महसूस तो नहीं कर सकता, पर सितारों की रौशनी को देख सकता हूँ। नींद मेरे से कोसों दूर उन बंद अलमारियों के पीछे जाकर छिप गई है। मैं तुम्हे इस चाँद की सूरत में देख रहा हूँ, इसकी बरसती शफ्फाक़ चांदनी में तुम्हे अपनी बाहों के आग़ोश में महसूस कर सकता हूँ, हीरों से चमकते सितारों की जगमगाहट में तुम्हारी मुस्कान की झलक पा रहा हूँ। मैं तो तुम्हारे इश्क़ की मूर्ती हूँ और मेरा दिल इसकी मिटटी को धीरे-धीरे तोड़कर मेरी हथेलियों में भर रहा है। मैं निडर हूँ, फिर भी एक अनजाना डर मुझे तराशता जा रहा है।

मैं अधर में हूँ और जागते हुए भी सोया महसूस कर रहा हूँ, मेरे पैर ठंडे फ़र्श को छू रहे हैं और मैं इस अनिद्रा वाली नींद में चलते हुए अपने घर का खाखा ख़ोज रहा हूँ। मैं ग्रेनाइट से बनी मेज़ छू रहा हूँ और चमड़े से बने सोफ़े पर अपनी उँगलियों में पसीजते पसीने के निशाँ बनाकर छोड़ता रहा रहा हूँ। मैं दरवाज़े तक पहुंच उसे सरका कर बाहर लॉन में ओस से गीली नर्म घास पर खड़ा अपनी आत्मा को तुमसे जोड़ने का प्रयास कर रहा हूँ। तुम यहाँ भी नहीं हो पर तुम यहाँ के कण-कण में व्याप्त हो। समस्त प्रांगण तुम्हारे प्रेम से दमक रहा है। मैं दिक्सूचक बन गया हूँ पर अपनी उत्तर दिशा नहीं ढूँढ पा रहा हूँ। मेरा तीर लगातार घूम रहा है और मुझे नींद के झोंके आने लगे हैं। मैं आसमां की तरफ देखता हूँ तो मेरी आँखें धुंधली हुई जाती हैं, मैं लालायित हूँ, मैं तरस रहा हूँ, मैं अपनी पसलियों को अपनी हथेलियों से थामे खड़ा हूँ और अपने दिल की धडकनों को सीने से बहार निकल पड़ने के लिए संघर्ष करते, दबाव बनाते महसूस कर रहा हूँ। मैं निडर हूँ, फिर भी मेरी हर सांस के साथ एक अनकहा डर सांस ले रहा है।

दुनिया मौन है। मैं पुराने बरगद पर, जिससे तुम्हे बेहद लगाव है, पर पड़े झूले पर औंधा लेट गया हूँ। तुम्हारे होने के एहसास को अपना तकिया बना तुम्हारे सीने पर सर रखकर मैं आराम से लेटा हूँ। पर यह एहसास मेरी मौजूदगी को नकार रहा है। मेरे सपने मेरी हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ कर रहे है। पर मैंने हार नहीं मानी है मैं कोशिश कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे अक्स को इन बाहों में भरता हूँ पर मुझे तुम्हारी अनुपस्थिति के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता। मेरा ह्रदय में आज भी तुम्हारे साथ की स्मृतियाँ ताज़ा हैं। मैं तुम्हारी परछाई को इन बेजुबां चीज़ों में छूने की कोशशि कर रहा हूँ और अपने हाथों के स्पर्श से उन अलसाई स्मृतियों को मिटाता जा रहा हूँ। मैं आगे बढ़ एक दफ़ा फिर तुम्हे खोजने की कोशिश कर रहा हूँ। तुम मुझे चिढ़ाती हो और मेरी आँखें नम हो जाती हैं। तुम ख़ुशी से खिलखिलाकर, प्रफुल्लित हो उठती हो और मैं तुम्हारे प्रेम के गुरुत्वाकर्षण में बंधा चला जाता हूँ। मैं अपने हाथ ऊपर उठा खड़ा हूँ और ऐसा महसूस कर रहा हूँ जैसे इश्क़ की हवा में तैर रहा हूँ और अरमानो के आसमां में तुम्हारी मदहोशी के बादलों में गोते लगता आगे बढ़ रहा हूँ और जल्द ही तुम्हारे करीब, बहुत करीब पहुँच जाऊंगा। मैं इन बादलों से ऊपर, इन वादियों से परे, चाँद सितारों के बीच कहीं किसी ख़ूबसूरत गुलिस्तां में तुम्हारे साथ बैठ बातें करूँगा। यही सोच मैं ख़ुशी से झूम जाता हूँ। मैं अपने वादे से बेहद प्रफुल्लित हूँ। तुम गर्म सांसें छोड़ रही हो, गहरी सांसें भर निःश्वास हो रही हो और तुम्हारा आकर्षण फिर से मुझे तुमसे जोड़ रहा है। आशा, उम्मीद, विश्वास मेरी नसों में खून बनकर दौड़ रहा है और मेरी देह की मिटटी को सींच रहा है। मैं एक दफ़ा फिर से इंतज़ार में बैठा हूँ तकियों को अपने आस-पास जमा किये हुए। अकेला बिलकुल अकेला, ख़ामोशी को पढ़ता और तुम्हारे प्रतिबिम्ब से बातें करता।  में अकेला हूँ सचमुच अकेला।

ऐ मेरे चंद्रमा - शुभरात्रि।
आज रात मेरे लिए कोई अनोखा गीत गाओ।
सुबह के उजाले तक मुझे अकेला इंतज़ार के लम्हों में तड़पता मत छोड़ देना।

#तुषार राज रस्तोगी #कहानी #इंतज़ार

शुक्रवार, जुलाई 24, 2015

दोस्ती - दोस्ती ही रहती है














दोस्ती...

ज़िन्दगी का इम्तिहान है
धैर्य रुपी गरिमा महान है

सच्चे दिलों का ईमान है
धर्म का अद्भुत ज्ञान है

एक साथ मिल हँसना है
एक साथ मिल रोना है

उस प्रेम की तरह होती है
जो कभी बूढ़ा नहीं होता है

गर्म और सुखद रहती है
जब बाक़ी ठंडा पड़ जाता है

'निर्जन' तब भी दोस्ती रहती है
जब जीवन में प्रलय आ जाता है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, जुलाई 21, 2015

दोस्ती में मोहब्बत













तेरी दोस्ती गरचे सच नहीं होती
मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई होती

कुछ अपने पशेमान हो गए होते
जो बात ज़बां से निकल गई होती

ग़द्दारों ने सही किया दूर रहे मुझसे
पास होते तो जान उनकी गई होती

'निर्जन' तुझे भी कमज़र्फ़ मान लेता
जो ये दोस्ती पुख़्ता ना हो गई होती

मैं ज़िन्दगी के आज़ाबों में फंसा होता
जो दोस्ती में मोहब्बत ना हो गई होती

गरचे - If
पशेमान - Embarrassed
पुख़्ता - Strong
कमज़र्फ़ - Mean
आज़ाबों - Pain

--- तुषार राज रस्तोगी ---

एक अधूरी प्रेम कहानी

उस रात बारिश में भीगती उस लड़की को देखा। देखने पर तो लगता था वो मुस्कुरा रही है पर सच यही था की वो दर्द था जो उसकी खूबसूरत आँखों से रिसता हुआ उसके गालों को और सुर्ख कर रहा था और फिर बारिश में पानी के साथ गुफ़्तगू करता हुआ अपनी राह को निकल जाता था। वहीं करीब में एक लड़का एकदम खामोश, गुमसुम, खोया हुआ अकेला बैठा अपने अकेलेपन के साथ जद्दोजहद करता हुआ अपने पर रोता नज़र आ रहा था। उन दोनों की पहली मुलाक़ात एक सूनसान सड़क पर हुई थी। यकायक आँखें चार होते ही उनके दिल एक दूजे के लिए धड़कने लगे थे और उन्हें पहली नज़र वाला इश्क़ हो गया था। वो दोनों आपस में आत्मा से जुड़ाव महसूस करने लग गए थे और यह सब इतनी तेज़ी के साथ हुआ जिसकी ना तो उन दोनों को कभी कोई उम्मीद ही थी और ना ही ऐसे किसी हसीं हादसे की उन्होंने कल्पना ही की थी। इसमें बुरा तो कुछ भी नहीं था, क्योंकि अब तो शायद सब कुछ अच्छा ही होना था। उन दोनों को जो भी कुछ चाहियें था वो उन्हें मिल गया था और जो उनके पास नहीं था वो भी आज उनके पास था। उनकी जिंदगियां इश्क़ के अमृत में सराबोर, मीठे गीत गुनगुनाती, बेहद उल्लासित और प्रकाशमय नज़र आ रहीं थी और इस सबके सामने उनकी दिक्कतें, परेशानियाँ और ज़िन्दगी के दीगर मसले बहुत ही छोटे पड़ते नज़र आते थे।

परन्तु यह सब शायद बस कुछ लम्हों तक सीमित था क्योंकि हर वक़्त चाँद सितारों पर होने की कल्पना करना तो बेवकूफ़ी करने जैसा ही होता है और वास्तविकता से परे जीवन जीने का मतलब एक हवा होते सपने में जीने और उम्मीद लगाने से ज्यादा कुछ भी नहीं होता है। जब जीवन में प्यार जैसा सुखद अनुभव मिलता है तब उससे ज्यादा उत्कृष्ट और कुछ नहीं होता, इससे बेहतरीन जीवन में कुछ और मिल ही नहीं सकता पर इस बात को सभी जानते और मानते हैं जिसे शर्तिया कह सकते हैं कि ज़िन्दगी में अच्छाई का पीछा बुराई कभी नहीं छोड़ती। आख़िर तक दुम पकड़े उसे खाई में धकेलने की कोशिश में लगी ही रहती है। और फिर आख़िरकार वही हुआ जिसका डर था सब कुछ सही और अच्छा था पर दर्द ने पीछा किया और बिना किसी शक-ओ-शुबा के कहें तो दोनों के दिलों को ख़ाली कर दिया। उन्होंने सोचा था कि उनका इश्क़ और वो परिंदे की तरह आज़ाद हैं पर शायद दुनिया में सही, सम्पूर्ण, दोषहीन, निष्कलंक प्यार जैसा कुछ होता ही नहीं है। ख़ामियों के साथ इश्क़ करना ही परिपूर्ण प्रेम है।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, जुलाई 18, 2015

एक सपना - एक एहसास

"तुम्हारे बेहद अदम्य, कोमल, नाज़ुक, मुलायम, नज़ाकत भरे हाथों के स्पर्श की छुअन बिलकुल वैसी है जैसी मैं हमेशा से चाहता था और जिनके लिए तरसता था। तुम बहुत ही शरारती इश्क़बाज़ हो और हमेशा मेरे साथ मीठी सी नई-नई शरारतें करती रहती हो जिनके लिए मैं अक्सर अपने आप को अचानक से तैयार नहीं कर पाता हूँ। तुम मुझे अपनी प्यार भरी बाहों में जकड़ लेती हो और मेरे से ऐसे लिपट जाया करती हो जैसे तुम्हारे लिए सिर्फ और सिर्फ बस मैं ही एक हूँ और जब मैं तुम्हे चूमता हूँ तब भी तुम मुझे हमेशा ही अप्रत्याशित रूप से विचलित कर देती हो। मैं तुम्हारे दिव्य प्यार को इन होठों की सरसराहट, छुपी हुई कसमसाहट, सिमटी हुई घबराहट और अनकहे कंपन में महसूस कर सकता हूँ। तुम्हारे आगोश में आते ही दिल में बहुत ही उग्र विचार उत्पन्न होते हैं परन्तु साथ ही तुम्हारे प्रेम की सहनशील स्नेही माधुर्यता, सुखदता और रमणीयता मुझे सहसा ही स्थिर और निश्चल बना देती हैं और तुम्हे मुझसे कसकर लिपटे रहने को बाध्य कर देती हैं साथ ही मेरे मन का एक छोटा सा हिस्सा इस आश्चर्य को मानते हुए मेरे दिल में उठती उमंगो पर क़ाबू पा लेता है जब तुम्हारे जोशीले हाथों का जिज्ञासापूर्ण स्पर्श मेरे तत्व में लीन होने की मनोकामना लिए और अधिक पाने की चाहत करते आलिंगन में इधर-उधर थोड़े पलों में बहुत कुछ तलाशता महसूस देता है। तुम्हारे भोले मनमोहक प्रेम की मोहकता, तुम्हारे व्यक्तित्त्व का तेज़, तुम्हारे गुणों की विशिष्टता, तुम्हारे चरित्र की सौम्यता, तुम्हारी देह की सुगंध, तुम्हारी निकटता की ताज़गी, तुम्हारी मुस्कराहट की मिठास, तुम्हारे अस्तित्त्व की मधुरता और तुम्हरी अंगार सी दहकती साँसों का सान्निध्य मुझे तुम्हारे इश्क़ में दुनिया से बेख़बर होने को मजबूर किए देता है। मेरे दिल के भीतर तुम्हारा भावुक, निर्मल प्रेम मुझे पूर्णता का एहसास करता है, तृप्त करता है, शांत करता है, मेरी बेचैनी और व्याकुलता को संतुष्ट करता है। आने वाले समय में भी मुझे उम्मीद है हमारा प्यार यूँ ही बढ़ता रहेगा और तुम्हारे दिल में मेरे और मेरे इश्क़ की लालसा और तड़प कल भी ऐसी ही बनी रहेगी और आह...! आज एक दफ़ा फिर से दोहराता हूँ कि मैं पूरी तरह अपने तन, मन, वचन से तुम्हारे इश्क़ में गिरफ़्तार हो चुका हूँ। मैं तुम्हारा था, तुम्हारा हूँ और सदा तुम्हारा ही रहूँगा।"

टिंग...टिंग...अभी राज मन ही मन यह सब आराधना से कहने की सोच ही रहा था और अपने ख्यालों में मग्न खोया हुआ था कि लिफ्ट रुक गई और घंटी बजने के साथ ही लिफ्ट का दरवाज़ा खुल गया। एक बार फिर, उसके मन की बात मन में ही रह गई। आराधना उसकी शक्ल देखकर हँस पड़ी और बोली, "कहाँ गुम हो हुज़ूर, किधर खोये हुए हो, घर जाने का दिल नहीं है क्या? मेट्रो स्टेशन आ गया चलो एंट्री भी करनी है।"

राज उसके सवालों को सुनता, चेहरे को निहारता, हाथ थामे मुस्कुराता हुआ साथ चल दिया।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जुलाई 12, 2015

यूं आशार बन जाते हैं



















जब खून के रिश्ते ही दर्द पहुंचाते हैं
तब दिल के ज़ख्म नासूर बन जाते हैं
खून-ए-जिगर भी रोता है ज़ार-ज़ार
रिसते खून से यूं आशार बन जाते हैं

जब अपने ही एहसासहीन हो जाते हैं
अपनों के दर्द से आँख मूँद कतराते हैं
कड़वे बोल भोंक देते हैं दिल में खंजर
दिल के घाव से यूं आशार बन जाते हैं

जब प्यार भरे हाथ साथ छोड़ जाते हैं
तब सरपरस्त ही राहों में भटकाते हैं
दर-ब-दर जब फिरता हैं मारा-मारा
अकेले पलों से यूं आशार बन जाते हैं

जब जन्मदाता बेपरवाह हो जाते हैं
और अपने खून के आंसू रुलाते हैं
हाल-ए-दिल बताएं ये किसे अपना
ऐसे दर्द से यूं आशार बन जाते हैं

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, जुलाई 11, 2015

पहला प्यार - ज़िन्दगी में कितना ख़ास















पहली नज़र
पहली धड़कन
पहला जज़्बात
पहला एहसास
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहली दफ़ा
पहला मौक़ा
पहली कशिश
पहला ख़याल
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहला प्यार
पहली माशूक
पहला परिचय
पहली बात
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहला ख़त
पहला कार्ड
पहला फूल
पहला उपहार
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहली डेट
पहली मुलाक़ात
पहली ट्रीट
पहला साथ
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहला इंतज़ार
पहला लफ्ज़
पहला इज़हार
पहला इक़रार
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहली गर्मी
पहली बरसात
पहली सर्दी
पहला अलाव
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहला स्पर्श
पहला मिलन
पहला चुंबन
पहला अनुभव
ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

पहली पहल
सावन में आज 
'निर्जन' करता
दिल की बात
पहले प्यार
का एहसास

ज़िन्दगी में
कितना ख़ास

ज़िन्दगी में
कितना ख़ास...

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, जुलाई 08, 2015

तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ













मैं महसूस करता हूँ तेरे हाथों को अपने हाथों में 
मैं महसूस करता हूँ तेरे बदन को मेरे बदन के पास
मैं महसूस करता हूँ तेरे गुलाबी होठों अपने होठों पर
मैं महसूस करता हूँ तेरी साँसों को अपनी साँसों में
मैं महसूस करता हूँ तेरे इश्क़ को अपनी रातों में 
मैं महसूस करता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं सुनता हूँ तुझे कहते कि प्यार हैं मुझसे
मैं सुनता हूँ तेरी फुसफुसहटों में नाम अपना
मैं सुनता हूँ तुझे कहते एक सिर्फ मैं ही हूँ तेरे लिए
मैं सुनता हूँ तेरी धीमी आहों को अपने कानो में
मैं सुनता हूँ तेरी खामोश आवाजों को सोने के बाद
मैं सुनता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं देखता हूँ तू दौड़ कर मेरी बाहों में समा जाती है
मैं देखता हूँ तू सूनेपन में उम्मीद की रौशनी लाती है
मैं देखता हूँ तू मेरे डर को कैसे दूर भागती है
मैं देखता हूँ तू कैसे मेरे आंसू पल में पोंछ जाती है
मैं देखता हूँ तू जब अपनी नज़रों से मुझे देखती है
मैं देखता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं चखता हूँ तेरे नाज़ुक गुलाबी होठों का स्वाद
मैं चखता हूँ तेरी बातों की चहकती मिठास
मैं चखता हूँ तेरे बहकते जूनून का उन्माद
मैं चखता हूँ तेरी मदमस्त जवानी की आब
मैं चखता हूँ तेरे हुस्न की मदहोश पुरानी शराब
मैं चखता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं महकता हूँ तेरी देह की महक के साथ
मैं महकता हूँ तेरे गेसुओं की लहक के साथ
मैं महकता हूँ तेरी हंसी की खनक के साथ
मैं महकता हूँ तेरे जोश में लिपट जाने के साथ
मैं महकता हूँ तेरे इंतज़ार भरे लम्हों के साथ
मैं महकता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

मैं बस तुझे महसूस करता हूँ
मैं बस तुझे सुनता हूँ
मैं बस तुझे देखता हूँ
मैं बस तुझे चखता हूँ
मैं बस तुझसे महकता हूँ
मैं बस इतना करता हूँ और तेरे इश्क़ में खो जाता हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जून 28, 2015

किसकी सदा है













किसकी सदा है, ये किसकी सदा
गूंजती है मन में, ये झूमती है तन में
भेदती है आत्मा, तोड़ती है चेतना
धुआं धुआं कर, ह्रदय ये तप उठा
मीठा सा सन्नाटा, हर तरफ फूटता
तन-मन दोनों में, संतुलन है टूटता
अंतर्मन सब, खोने-पाने को मचल रहा
वादियों की कोख़ से, प्रेम रस बरस रहा
उजाला ये कब हुआ, मैं झरनों से पूछता
उत्तर पाते-पाते, ये ह्रदय रहेगा भीगता
रात के उजाले में, चाँद गीत सुना रहा
आसमां के तारों को, धरा पर घुमा रहा
अलसाई कलियों की, थाप सुनाई दे रही
मचलती उमीदें, जाग 'निर्जन' कह रहीं
दिशाएं भी चहक उठीं, आनंद नया पाया
आत्मा और पर्वतों का, दिल भी भर आया
दिन रात तपाया तन-मन को, इश्क़ से तब
बन कंचन प्रेम चमका जीवन के नभ पर
मेरे सूरज ओ मेरे सूरज, अब तू ही बता
ये किसकी सदा है, ये किसकी सदा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, जून 24, 2015

ये ज़रूरी तो नहीं














ज़िन्दगी रो रो के बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं
आह का दिल पे असर हो ये ज़रूरी तो नहीं

नींद बेपरवाह हो काँटों पर भी आ सकती है
मख़मली आग़ोश हो हासिल ये ज़रूरी तो नहीं

ज़िन्दगी को खेल से ज्यादा कुछ समझा ही नहीं
हर ग़म को मरहम मिल जाए ये ज़रूरी तो नहीं

मैं दुआओं में रब से क्यों मांगू उसको हर रोज़
वो मेरी थी, है औ सदा रहेगी ये ज़रूरी तो नहीं

मेरी दुनिया में बस उसकी ही कमी है 'निर्जन'
परवाह उसको भी मेरी हो ये ज़रूरी तो नहीं

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जून 21, 2015

रहती है














लोग मिलते ही हैं औ महफ़िल भी जवां रहती है
वो साथ ना हो तो हुस्न-ए-शय में कमी रहती है

ग़रचे ये नहीं है ख़ुशी मनाने का मौसम तो फिर
जो ख़ुशी मनाऊं भी तो पलकों में नमी रहती है

हर किसी दिल में उफ़नता नहीं सर-ए-उल्फ़त
कुछ दिलों पर सदा गर्द-ए-मायूसी जमी रहती है

इश्क़ मसाफ़त-ए-हस्ती है ज़माने को क्या मालूम
कब तलक किसकी हमसफ़री हमक़दमी रहती है

तू भी उस हूरान-ए-ख़ुल्द पर फ़नाह है 'निर्जन'
जिसके लिए खुदा की धड़कन भी थमी रहती है

सर-ए-उल्फ़त - Madness for Love
गर्द-ए-मायूसी - Trifle of Sorrows
मसाफ़त-ए-हस्ती - Journey of Life
हूरान-ए-ख़ुल्द - Houris of Paradise


--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, जून 17, 2015

वो झाँसी की रानी थी



















बनारस में वो थी जन्मी, मनु सबकी दुलारी थी
मोरपंत, मां भागीरथी की, एकमात्र दुलारी थी

पिता छांव में बड़ी हुई, मां क्या है ना जानी थी
वीरांगना बन जाने की, बचपन से ही ठानी थी

हर कौशल में दक्ष रही, बहन नाना को प्यारी थी
राजा संग लगन हुआ, पर हाय भाग्य की मारी थी

सब गंवाकर भी अपना, हिम्मत ना उसने हारी थी
ज्वाला ह्रदय में रखकर, जिगर में भरी चिंगारी थी

सिंहनाद गर्जन कर वो, जब रणभूमि में हुंकारी थी
देह लौह जैसी थी उनकी, कर तलवार कटारी थी

छक्के दुश्मन के छूटे, बन चंडी जब ललकारी थी
शहादत दे अमर हुई वो, जां देश के लिए वारी थी

व्यक्तित्व अनूठा उनका, मन मोम की क्यारी थी
वीर सुपुत्री भारत माँ की, वो लक्ष्मीबाई न्यारी थी  

बुंदेले हरबोलों से सबने, उनकी सुनी कहानी थी
क्या खूब लड़ी थी मर्दानी, वो झाँसी की रानी थी

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, जून 12, 2015

अपना कहते मुझे हजारों में















जो वफ़ा होती खून के रिश्तों में बाक़ी
तो जज़्बात क्यों बिकते बाज़ारों में

जो हर कोई देता साथ ज़मानें में अपना
तो तनहा चांद ना होता सितारों में

जो हर गुल की ख़ुशबू लुभाती दिल को
तो गुलाब ख़ास ना होता बहारों में

जो मिले मौक़ा तुरंत नज़र बदलते हैं 
तो बात है ख़ास खुदगर्ज़ यारों में

बख़ुदा 'निर्जन' भी ख़ुशक़िस्मत होता
जो वो अपना कहते मुझे हजारों में

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, जून 06, 2015

दे देते














दिया पानी क्या आँखों का रवानी खून की देते
दिलाती याद उम्र भर निशानी दो जून की देते

जो देनी थी तो होठों की मुस्कराहट ही दे देते
कलाम-ए-पाक रच इश्क़ का तुम साथ दे देते

कोई यादों की नज़्म लिख ज़ुल्फ़ में टांक ही देते
बीते लम्हों की काट कर एक आदा फांक ही देते

छिपाकर दिल में जो संजोये वो एहसास दे देते
तनहा रातों की बेचैनी से भरे वो जज़्बात दे देते

देना ही था कुछ 'निर्जन' जिगर की आग दे देते
दम तोड़ती मोहब्बत का दीवान-ए-ख़ास दे देते

--- तुषार राज रस्तोगी ---