गुरुवार, फ़रवरी 14, 2013

श्रीमती अनारो देवी – भाग १

श्रीमती अनारो देवी - मुख्य पात्र
श्री गंगा सरन - पति श्रीमती अनारो देवी
श्री साहू हर प्रसाद - पिताजी श्रीमती अनारो देवी
श्रीमती हिरा देवी - माताजी श्रीमती अनारो देवी
श्री जानकी प्रसाद - पिताजी श्री गंगा सरन
श्रीमती कलावती देवी - माताजी श्री गंगा सरन

श्रीमती गार्गी देवी - सुपुत्री श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री सुरेन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री योगेन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री महेन्द्र प्रसाद 'मानू' - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री वीरन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री सत्येन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्रीमती बीना देवी - सुपुत्री श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्रीमती माधरी देवी - सुपुत्री श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री विनो दप्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी

अब तक के सभी भाग - १०
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ब्रिटिश राज | गुलाम भारत | आज़ादी के लिए जददो जहद ज़ारी थी | इसी टहलुआ हिंदुस्तान के उत्तर प्रदेश प्रान्त के एक छोटे से शहर मुरादाबाद में बसे मोहल्ला दिनदारपुरा के रहने वाले थे साहू हर प्रसाद | ऊँचा लम्बा कद, आकर्षक व्यक्तित्व, रौबीली ज़ोरदार आवाज़ के मालिक जमींदार खानदान में जन्मे मिजाज़ से बहुत ही गर्म और गुस्सैल प्रकृति वाले व्यक्ति थे | मग़रुर किन्तु निडर स्वाभाव के स्वामी थे | हर एक कार्य में दक्ष और बुद्धिकौशल के प्रतीक थे | यद्यपि ज्यादा शिक्षित नहीं थे परन्तु दूरदर्शी गज़ब के थे | बहुत ही सफल उद्यमी भी थे | हर कारोबार की समझ रखने वाले, रसूकदार शक्सियत, बहुत ही सुलझे हुए इंसान थे | उनके पुरखे उनके लिए अनेकों खेत, खलिहान, रुपया पैसा और साथ में बहुत सारी अकड़ भी छोड़ गए थे | परन्तु एक बात सराहनीय थी के अपनी बुद्धि, विवेक और कार्यकुशलता के चलते उन्होंने ब्याज बट्टा, अनाज की आढ़त, सोना, चांदी, विदेशी साड़ियाँ और कपड़ा, ज़मीन ज़ायदाद, खाने के मसाले, कोयला, मेवा, लकड़ी आदि के थोक व्यापार में बड़ा नाम कमाया | इस के चलते अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ‘साहू’ के ख़िताब से नवासा | सरकारी काम काज और कोर्ट कचेहरी की भी गज़ब की समझ रखते थे और लोगों के झगड़ों के फैंसले भी करवाया करते थे | सम्मानार्थ सरकारी अदालतों में उन्हें न्यायाधीश के साथ फैसलों में बैठाया जाता था | गज़ब के न्यायकर्ता और परखी नज़र रखते थे वो | लोगों से काम कैसे निकलवाना है इसमें उन्हें महारत हासिल थी | सारे शहर में उनका बहुत ही रुतबा था तथा सभी उनको बहुत आदर और सम्मान दिया करते थे | साहू साब, साहू साब कहते लोगों का मुंह नहीं थकता था | कोई भी उलझन हो, अड़चन हो, आपसी झगडा हो, सब न्याय की आशा लिए उनके पास पधारते थे | और साहू साब भी एक दम सटीक न्याय करते थे | इसलिए सभी उनके कायल थे | उनके इस व्यक्तित्व के विपरीत उनका एक शौक बिलकुल जुदा था | उन्हें पाक कला में बेहद रूचि थी | वैसे तो कहने को दसियों नौकर नौकरानियां थे हवेली में पर जब खाना बनाने का दिल होता या कभी मेहमान नवाज़ी का वक़्त आता तो साहू साब खुद खड़े होकर खाना बनाते और आदेश देकर अपनी देख रेख में स्वादिष्ट व्यंजन बनवाते | मसालों के इस्तमाल से सब्जियों को स्वादिष्ट कैसे बनाया जाये इसका बहुत ही गूढ़ ज्ञान था उन्हें | उनकी दावत के पकवानों को खाकर लोग अपनी उँगलियाँ तक चबा जाया करते थे और उनकी वाह वाही करते नहीं थकते थे | शहर के अनेकों हलवाई उनसे सलाह मशवरा कर के अपने कारोबार को बढ़ा रहे थे और उनके गुणगान करते न चूकते थे |

यूँ तो साहू साब का ब्याह छोटी उम्र में हो गया था | उनकी पत्नी हीरा देवी भी एक संभ्रांत कुल से ताल्लुक रखती थी | उनकी शरीक-ए-हयात की शक्सियत भी उन्ही के माकूल थी | शर्म उनका गहना था और मीठे बोल उनकी फितरत | बला की सुन्दर | बेहद शांत स्वभाव की घरेलू विचारधारा वाली आकर्षित महिला थीं | परन्तु संतान सुख की प्राप्ति उन्हें अनेक वर्षों बाद हुई | ये प्रभु की इच्छा ही थी के इतने वर्षों के इंतज़ार, कामना, पूजा पाठ, दान दक्षिणा, कर्म काण्ड और मेहनत पश्चात उनकी धर्म पत्नी हीरा देवी ने एक चाँद की चांदनी सी पुत्री को जन्म दिया | पुत्री होने पर भी दोनों अत्यंत हर्षित थे | उन्होंने कभी भी पुत्र और पुत्री में भेद भाव नहीं किया था | उनके लिए दोनों का महत्त्व समान था और फिर यह तो इश्वर का प्रसाद थी | इतने जतन के पश्चात संसार में आई थी |

पुत्री थी गज़ब की खूबसूरत | बालिका के मुखमंडल से सूर्य सा तेज उत्पन्न हो रहा था | किशमिश जैसी छोटी छोटी आँखें नन्हे से गोल मटोल चेहरे पर सजी थीं | चिल्गोज़े सी छोटी सी नाक और अंजीर जैसे लालम-लाल गुलाबी गाल के बीच मुनक्का से मीठे होठ मुस्कराहट की मिठास बिखेर रहे थे | उन होटों के ऊपर महीन सा इलाईची जैसा तिल था जो किसी के भी दिल जीतने में पूर्णतः सक्षम था | ऐसा प्रतीत होता था मानो इश्वर ने शुभ की मेवा थाली सजाकर साहू साब के जीवन में भेंट कर दी हो | बिटिया के ज़िन्दगी में आते ही उनके कारोबार में दिन दूनी और रात चौगनी तरक्की होने लग गई | आते ही वो सबकी लाडली बन गईं | उनकी अनार जैसी सुर्ख रंगत ने सबका मन मोह लिया | साहू साब ने इसी सुन्दरता को देखते उनका नाम अनारो रखा था |

समय का पहिया चलता रहा और ज़िन्दगी भी साथ साथ बढ़ती रही | अब अनारो भी बड़ी हो रही थीं | खेल कूद में उनकी रूचि ज्यादा नहीं थी | न ही सहेलियों के साथ इधर उधर जाया करती | अपनी उम्र के बच्चों से अधिक दिमाग था उनमें और उसे वो सकारात्मक तरीके से उपयोग किया करती थीं | उन्हें अपने पिताजी के साथ समय व्यतीत करना बहुत पसंद था | पढाई लिखाई के आलावा भी उन्हें अपने पिता के स्नेह की छाँव में बहुत कुछ सीखने को मिलता | दुनियादारी, बोल चाल, आचार विचार प्रकट करना, काम क़ाज और कारोबार को समझना उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही शुरू कर दिया था | साहू सब को भी अपनी लाडो से बहुत लगाव था | वो जितना उन्हें सिखाते और बतलाते वो तुरंत ही सीख जातीं | बचपन से ही वो बहुत ही कार्यकुशल बालिका थीं | उनका जीवन को समझने और जीने का नज़रिया बहुत ही साफ़ था | हर समय कुछ न कुछ सीखते रहना और पढ़ते रहना उसकी आदत थी बाक़ी जो थोड़ी बहुत कमीवेशी रह जाती वो पिताजी और माताजी की सोहबत पूरी कर देती | ऐसे ही खेलते कूदते और सीखते कुछ और साल बीत गए |

ग्यारह वर्ष की आयु के आते आते नियति ने उनपर एक बहुत दुःख की गाज गिरा दी | अनारो की माताजी स्वर्ग सिधार गईं | उस उम्र में जब माता के साथ और शिक्षा की सबसे ज्यादा और सक्थ ज़रुरत होती है अनारो एक दम अकेली पड़ गईं | ऐसे समय में उनको साहू साब ने संभाला | वो उनके लिए पिता और माता दोनों का फ़र्ज़ पूरा किया करते | कारोबार के साथ साथ अब वो घर पर और बेटी पर भी पूरा ध्यान दिया करते और अपनी बेटी को अपना सम्पूर्ण समय, शिक्षा, प्यार, लगाव और सम्मान दिया करते | उन्हें पाक कला के गुण भी सिखाते साथ साथ कारोबार की बारीकियां भी समझाते और जीवन को जीने का तरीका सिखलाते | साहू साब के मातहत, अनारो को जीवन के सभी विशेष ज्ञान सीखने को मिल रहे थे और उनके जीवन और बुद्धी दोनों का विकास परस्पर सम्पूर्ण रूप से हो रहा था |

अब अनारो चौदह वर्ष की हो गई थी | देखने में वैसे तो छोटी कद काठी की थीं परन्तु छहरहराह बदन, फुर्तीली, पतली दुबली, गोरी चिट्टी, चमेली के तेल लगाये बंधे हुए घने काले सियाह बालों की कमर को छूती लम्बी नागिन सी चोटी, हिरनी जैसी चमकती आँखें, तीखे नक्श, सुर्ख गुलाबी होठ, अनार के दानो सी उनकी हंसी, माथे पर सूरज सा तेज लिए कुमकुम की बिंदिया, हाथों में रंग बिरंगी कांच की चूड़ियों के साथ सोने का जडाऊ काम के कंगन, विदेशी सिल्क की महीन काम वाले बॉर्डर की साडी पहने सबसे अलग ही नज़र आतीं | उनके मुखमंडल के तेज, पहनावे, आचार, विचार, व्यव्हार और बातचीत से साफ़ झलकता के वो एक खानदानी और उच्चवर्गीय राजसी परिवार की महिला हैं | पिता की परवरिश का असर उनके परिवेश से साफ़ चमकता था | उनके चेहरे पर काला तिल उनकी नज़र का टीका बन गया था जो उन्हें नज़र-ए-बद से बचाता था | साहू साहब को अब उनके ब्याह की चिंता सताने लग गई थी | उन्होंने ने एक अच्छा सा खानदान देखना शुरू कर दिया था जहाँ वो अनारो को ब्याह सकें | काफी रिश्तों पर गौर फरमाने के पश्च्तात आख़िरकार उन्हें सफलता प्राप्त हुई और मेरठ शहर के एक ज़हीन और मशहूर-ओ-मारूफ खानदान में उन्होंने अनारो का रिश्ता पक्का कर दिया |

खानदान उनके रुतबे की टक्कर का था | यदि ज्यादा नहीं था तो कम भी नहीं था | बढ़िया कारोबार था | लड़के का नाम गंगा सरन था | बेहद सुन्दर, छह फुट लम्बाई, चौड़ा हाड़, मनमोहक व्यक्तित्व के स्वामी, वाक् कुशल, व्यव्हार कुशल, निश्छल स्वाभाव तथा मृदुभाषी थे | उनका अपना विदेशी कपड़े का व्यापार और कारोबार था | सम्पूर्ण भारतवर्ष के सभी राज्यों में विदेश से कपड़ा मंगवाकर उपलब्ध कराना तथा उसकी थोक बिक्री एवं फुटकर बिक्री भी किया करते थे | बहुत ही संपन्न परिवार था | साहू साब को पूरा यकीन था की उनकी पुत्री उस परिवार में बेहद खुश रहेगी | लड़का भी उन्हें बेहद पसंद था | आखिर विवाह दिवस आया और अनारो का कन्यादान करके साहू साब अपने कर्त्तव्य से मुक्त्त हुए और अनारो पराई हो गई | क्रमशः

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर कहानी का शुभारम्भ किये है,अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी.
    मेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
    "ब्लॉग कलश"

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  2. अगली कड़ी कि प्रतीक्षा रहेगी !

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  3. क -सावदार बुनावट लिए आगे बढ़ रही है कथा .सुन्दर नखशिख वर्रण नायिका का .

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  4. क -सावदार बुनावट लिए आगे बढ़ रही है कथा .सुन्दर नखशिख वर्रण नायिका का .

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  5. देश काल परिस्तिथि के अनुसार सुंदर कथ्य ,शेष कथा क्रम की प्रतीक्षा में ,शुभकामनाये

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  6. क्या लिखते हैं आप....सच में ....एकदम बांधे रखती है आपकी कहानी।


    सादर

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  7. बहुत उम्दा कहानी की प्रस्तुति सुंदर श्रंखला,,,

    recent post: बसंती रंग छा गया

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  8. सुन्दर कहानी,सुन्दर वर्रण....

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  9. मैंने अभी-अभी श्रीमती अनारो देवी -१ पढ़्ना शुरू किया है। आप की लेखनी में वह चमत्कार है जो पाठको को बाँधे रखता है। हर पंक्ति में आप ने शब्द चित्र प्रस्तुत किये हैं। ऐसे लगता है कि पाठक खुली आँखों से मन्त्र मुग्ध से हो कर स्वपन लोक में विचरण कर रहा है।

    सच में मज़ा आ गया!!!!!

    विन्नी

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